हम काफिला इ काफ़िर लिए जा रहे हैं
न गिनो हमें वतनपरस्तोंमें
हम तो गद्दार खुदिसे हुए जा रहे हैं
ऐ खुदा तुझे तेरी खुदाई की कसम
हमें इश्क का वास्ता न दे
हम खड़े बेवफाई इ कगार पर
नफरतों में फ़ना हुए जा रहे हैं
थे कभी हमभी बन्दे तेरे कायनातों के
खुद चले हैं जहन्नुम की राहों पर
कहर का दर नहीं तेरे
हम जलजलों को मिटाए जा रहे हैं
तुने भी चाह होगा लाख हमे
हमें इंकार नहीं
जा तेरी मेहेर्बनियों से अब इकरार नहीं
हम वजूद चाहतों के मिटाए जा रहे हैं
कर लेना हिसाब क़यामत के दिन
यद् रखना जुल्म ओ जहर अपने
हम अश्कों की जुबान अपने सिये जा रहे हैं
कौमुदी
न गिनो हमें वतनपरस्तोंमें
हम तो गद्दार खुदिसे हुए जा रहे हैं
ऐ खुदा तुझे तेरी खुदाई की कसम
हमें इश्क का वास्ता न दे
हम खड़े बेवफाई इ कगार पर
नफरतों में फ़ना हुए जा रहे हैं
थे कभी हमभी बन्दे तेरे कायनातों के
खुद चले हैं जहन्नुम की राहों पर
कहर का दर नहीं तेरे
हम जलजलों को मिटाए जा रहे हैं
तुने भी चाह होगा लाख हमे
हमें इंकार नहीं
जा तेरी मेहेर्बनियों से अब इकरार नहीं
हम वजूद चाहतों के मिटाए जा रहे हैं
कर लेना हिसाब क़यामत के दिन
यद् रखना जुल्म ओ जहर अपने
हम अश्कों की जुबान अपने सिये जा रहे हैं
कौमुदी
1 टिप्पणी:
farach sundar.....
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