मंगळवार, ३ जुलै, २०१२

Dream of Sleepless eyes. . .


I have a dream in my eyes
for those who slept beside
I wish all the peace and calmness 
seeking guys for, whatever you hide

Want to open you up 
want you to burst out 
want you gloom and blink
Want to blast too. 
Want you to search 
want to realize 
erase the differences 
and again re-size

want you to be general
and too, be very special
your extraordinary excellence 
will make everything normal 
holding a new revised universe
in my sleepless third eye
stretching my arms 
and spreading by

We are many
will be one
may be uncanny
will be none
Will create a womb 
full of light
Every fear
out of sight

No veil of shyness
no curse of defeat
devastated boundaries
compounded EARTH
to great
Creating a dream
for your radiant eyes
so far peeping in future 
of yours, with my sleepless eyes. . . 
-Kaumudi.

शुक्रवार, २९ जून, २०१२

पाऊस

मी वळून तुला सामोरी गेले नाही 
बाहू फैलावून मी तुला कवेतही घेतले नाही
मन तुकवून केवळ तुझे अघमर्षण मी झेलत राहिले 
शोधात राहिले ओलेपणापूर्वीचा  कोरडा स्पर्श 
मातीचे कितीतरी थर कोरत 
बुजऱ्या आवेगाने मी भिजत राहिले वर्षावात 
आणि अलिप्तप णाच्या  चिल खताने बचाव करत राहिले 


तू हलवून सोडलेस मला आणि 
मी तुला स्थिरतेत शोधात राहिले 
तू हवा असून नकोसा 
नको असून हवासा 
तू पाऊस वर झंझावात होऊन 
कोसळलास तडातडा 
मी द्विधेत हि चिंब भिजून घरात शिरले 
खिडकी बंद करण्याचे आणि उघडण्याचेही 
धैर्य माझ्यात उरले नाही. 
-कौमुदी. 

सोमवार, ३० एप्रिल, २०१२

khuda. . .

हम काफिला इ काफ़िर लिए जा रहे हैं
न गिनो हमें वतनपरस्तोंमें
हम तो गद्दार खुदिसे हुए जा रहे हैं

ऐ खुदा तुझे तेरी खुदाई की कसम
हमें इश्क का वास्ता न दे
हम खड़े बेवफाई इ कगार पर
नफरतों में फ़ना हुए जा रहे हैं

थे कभी हमभी बन्दे तेरे कायनातों के
खुद चले हैं जहन्नुम की राहों पर
कहर का दर नहीं तेरे
हम जलजलों को मिटाए जा रहे हैं

तुने भी चाह होगा लाख हमे
हमें इंकार नहीं
जा तेरी मेहेर्बनियों से अब इकरार नहीं
हम वजूद चाहतों के मिटाए जा रहे हैं

कर लेना हिसाब क़यामत के दिन
यद् रखना जुल्म ओ जहर अपने
हम अश्कों की जुबान अपने सिये जा रहे हैं
कौमुदी

गुरुवार, २९ मार्च, २०१२

फाह

ये फाह हैं| ये फाह हैं||
कोई यहाँ न आह हैं| ये फाह हैं||

अठखेलियाँ करती सदा
खुशियाँ यहाँ ये मस्तियाँ
सदियोंको भी यह चाह हैं|

बढाती जड़ें शाखे घनी
फुले फले यहाँ बिजलियाँ
भविष्य की यह रह हैं|

ले करवटे यहाँ जिंदगी
ये हैं प्रभु की बंदगी
यहाँ हमनवां अल्लाह हैं|

उम्मीद हैं बल हैं यही
इसकी कोई सीमा नहीं
यह शक्ति का वरदान हैं|

यहाँ तू भी मैं और मैं भी तू
बांधे दिलों की डोर हैं
यह प्यार का इक छोर हैं|

इंसानियत का कारवां
बढ़ रहा बढ़ता गया
यह जिंदगी का गाँव हैं|
ये फाह हैं| ये फाह हैं ||
-कौमुदी.
Fah is a Kashmiri word. . . It means the warmth provided by the mother to the baby. . .

बुधवार, २२ फेब्रुवारी, २०१२

THE CROSSING


I want to come to you
not to meet you 
but to sit with you,
to experience some glimpses of presence of existence.
You may talk or not 
I may watch or not
this is not the game,to touch, to see or to experience.
It is like THE CROSSING from one side to the other.
I want some moments to wait.
Let me have a piece of silence 
And a drop of tear from YOU 
I believe, I can ask you for this. . .
 more than anything.
(Hope it matters to YOU)  
                                    -Kaumudi.

इंतजार


मैंने सारे दरवाजे 
बंद कर दिए हैं तुम्हारेलिये 
फिर भी. . .तुम आ जाना 
आ जाना किसी झरोकेसे
सूरज की किरण के साथ 
कोई हल्किसी पवन के साथ 
पता हैं मुझे, 
कोई शलाका ले ही आएगी तुम्हे 
यूँ तो रूह में हो तुम कही 
अब के जीवन में बस जाना 
बस! आ जाना 
परछाईयोंमें अक्स तो देख ही लेती हूँ मै
फिर भी कोई तुम्हे, 
ले ही आएगा परीक्षितके महलमें 
पता हैं तुम सदा से हो वही 
लेकिन कोई आहटभी तो नहीं  
आ जाना एहसासके लिए
मै इंतजार कर रही हूँ 
                    -कौमुदी.

त्रिशंकू


मी आहे इथेच कुठेतरी . . .
या अवकाशाखाली 
जरी माझे कुठलेही आकाश नाही.
पायाखाली जमीन असणे हि गरज 
नाहीतर माझा झालेला त्रिशंकूच . . .कधीचाच . . .
                                             -कौमुदी.

चेहरा


आताशा माला माझाच चेहरा 
पहावासा वाटत नाही.
आरशातून कितीतरी नजरांचे व्रण
. . . टोचत राहतात.
ओळखीचे अनोळखी कित्येक चेहरे 
ओळखू येतात आता . . . 
"त्या" चेहऱ्यातून
निस्वार्थाचे हसू खेळवले आहे 
कि गेले आहेत किती पुराचे अश्रू !?
तद्दन बेरकीपणा लपलेला . . .
"तो" चेहरा आता परकाच आहे 
. . . . माझ्यासाठी 
                     -कौमुदी.

परका


खंत आहे,
मला नाही ओळखता आला 
तुझा आपले-तुपलेपणा. .
ठाऊक . .
तू परकाच आहेस माझ्यासाठी 
मग हि आगळी रहस्ये 
कशी उलगडली तुला?
मी मनाचा मोर तुझ्या हाती  देऊन 
मयूराक्षी झालेय खरी  
पण मयुरपंख होण्याचे  
नशीब नाहीच माझे  
असेल तुझ्या जगण्याने
माझ्या काळजाचा ठाव घेतलेला 
म्हणून जखम तूच बांधावी 
हा न्याय कुठे?
तुला आपलेपणाचा उमाळा यावा 
हा खरा हृदरोग माझा 
तुझ्या दयेने तुला 
खरेच. . परका करून टाकले 
कौमुदी.